नारनौल के सतनामी जिन्होंने औरंगजेब को नाकों चने चबवाए थे

सतनामियों का इतिहास 

-कौन थे सतनामी, क्यों हुआ औरंगजेब से युद्ध 

सतनामियों का विद्रोह मुग़लकालीन भारतीय इतिहास की एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है| बहुत कम संख्या में होने के बावजूद उन्होंने जिस तरह दिल्ली के बादशाह को चुनौती दी वह बेहद वीरता पूर्ण कार्य था| आखिर सतनामी कौन थे?
इतिहासकार इन्हें भक्ति आन्दोलन की उपज मानते हैं| भक्ति आन्दोलन को अहीरवाल क्षेत्र में सही ढंग से चलाने के लिए बने संगठन को लोग सतनामी, साध या मूडिया कहते थे| इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यह संगठन संत रैदास द्वारा चलाये गए रैदासी संगठन की एक शाखा थी| इतिहासकार डॉ.के.सी. यादव के अनुसार इस संगठन की स्थापना भक्त वीरभान ने 1543 ई. में की थी| 
सतनामी नाम के अनुसार सच्चे और चरित्रवान तो थे ही वे बहुत बहादुर भी थे| खाफिखां के शब्दों में-"यद्यपि ये लोग फकीरों की तरह रहते हैं, किन्तु इनमें से अधिकांश या तो खेतीबाड़ी करते हैं या छोटे-मोटे व्यापारिक धंधे| अपने संगठन के सिद्धांतों के अनुसार ये लोग सच्चे नाम के साथ जीना चाहते हैं और कभी भी बे-ईमानी या अन्याय से धन नहीं कमाते| इन पर कोई अत्याचार करे तो ये बरदास्त नहीं करते| इनमें से अधिकांश लोग सदैव हथियारों से लैस होकर घूमते हैं|"
सच और शांति के साथ जीने वाले सतनामी एक छोटी-सी घटना से बागी हो गए और इनकी बगावत ने दिल्ली का तख़्त हिला कर रख दिया| डॉ. के.सी.यादव के अनुसार 1672 में एक सतनामी और सरकारी बीच हुयी कहासुनी में सरकारी प्यादे ने सतनामी के सिर में लाठी मार दी, सतनामी के शोर मचने पर सतनामी इकट्ठा हो गए और सरकारी प्यादे को बुरी तरह मारा| घटना की जानकारी जब नारनौल के शाही अफसर जिसे शिकदार कहते थे, को मिली तो उसने सतनामियों को सजा देने के लिए सैनिक भेजे | किन्तु सतनामियों ने इस सैनिक टुकड़ी को पीटकर हथियार छीन लिए और मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ धर्मयुद्ध का एलान कर दिया| 
सतनामियों ने यहाँ के फौजदार ताहिर खां की सेना को बुरी तरह से हरा कर नारनौल पर कब्ज़ा कर लिया| सतनामियों ने मस्जिदों को ढहा दिया, मुग़ल खज़ाना लूट लिया और अपनी सरकार बनाकर पूरी व्यवस्था अपने हाथ में ले ली| मुग़ल साम्राज्य के सभी चिह्न मिटा दिए और मालगुजारी वसूलने लगे| 
जब इस विद्रोह और सतनामियों की बहादुरी के बात सुनी तो औरंगजेब भी चिंतित हो गया| उसने 15 मार्च 1672 को एक विशाल सेना शहजादा मुहम्मद अकबर और कुछ वरिष्ठ सेनापतियों के नेतृत्व में नारनौल भेजी| विशाल सेना होने के बाद भी मुग़ल सैनिक सतनामियों से भयभीत थे| क्योंकि किसी बूढी महिला ने सतनामियों से कह दिया कि उसने ध्वजा पर मंत्र फूंक दिया है, जो भी सतनामी इस ध्वजा के निचे लडेगा उस पर शत्रु के हथियारों का कोई प्रभाव नहीं होगा| और कोई मारा भी तो उसके स्थान पर 80 सतनामी खड़े हो जायेंगे| इस मंत्र और बहादुरी का जब औरंगजेब को पता चला तो उसने खुद अपने हाथो से कुछ लिखकर अपनी सेना की ध्वजा में सिलवाया तब कहीं जाकर मुग़ल फ़ौज सतनामियों से लड़ने को तैयार हुई| 
जैसे ही मुग़ल सेना नारनौल के पास पहुंची सतनामी उन पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े| एक बारगी तो उनका रणकौशल और बहादुरी देखकर मुग़ल सेनापति भी घबरा उठे थे, किन्तु विशाल सेना और अच्छे हथियार होने के कारन सतनामी बहुत देर तक सेना का मुकाबला नहीं कर सके| एक-एक कर लगभग पांच हजार सतनामी शहीद हो गए किन्तु मुग़ल सेना को एक कदम आगे नहीं बढ़ने दिया| किन्तु अंततः मुग़ल सेना विजयी रही| पांच हजार सतनामी ही इस युद्ध में नहीं मरे लगभग 15 हजार की मुग़ल सेना में से भी बहुत कम सैनिक और सेनापति जीवित बच सके| 
युद्ध की समाप्ति के बाद जिन्दा बचे सतनामी शासन के प्रतिशोध से बचने के लिए किसी सुरक्षित स्थान पर चले गए| किन्तु उनके द्वारा शुरू की गई अत्याचार के खिलाफ बगावत की परंपरा यहाँ आज भी जारी है| 

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