हेरिटेज सिटी बनने के इंतज़ार में हरियाणा का ऐतिहासिक शहर नारनौल

हरियाणा का ऐतिहासिक शहर नारनौल : बनेगा हेरिटेज सिटी !

हरियाणा का ऐतिहासिक शहर नारनौल कभी शिक्षा, संस्कृति, अध्यात्म और स्थापत्य कला का केन्द्र रहा है। आज साधन और संसाधनों के अभाव मेंं यह क्षेत्र भले ही पिछड़े क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, मगर बीते युग में यह जिला वैभव की बुलंदियों को छूता था। महर्षि च्यवन की पतोभूमि, सम्राट शेरशाह सूरी की क्रिड़ास्थली और अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल की कर्मस्थली, संत कवि नितानंद की जन्मस्थली रहा ये इलाका अतीत में राजाओं, नवाबों और रईसोंं की राजधानी रहा है। यहाँ के प्राचीन भवन और सरोवर इसके वैभवपूर्ण अतीत को बखूबी ब्यान करते हैं।
दिल्ली-जयपुर रेलमार्ग पर दिल्ली से लगभग सवा सौ किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण में स्थित ऐतिहासिक शहर नारनौल आज भूजल संकट ग्रस्त क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, मगर एक वक्त था जब यहाँ की दर्जनभर बावडिय़ाँ और आधा दर्जन विशाल तालाब सुविख्यात थे। आज भी प्रदेश के किसी भी एक शहर में सर्वाधिक ऐतिहासिक स्मारक होने का गौरव नारनौल को ही हासिल है। 
यहाँ के ऐतिहासिक स्मारक अपने कलात्मक सौन्दर्य, स्थापत्य कला, ऐतिहासिक साक्ष्यों और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में नायाब हैं। इनमें प्राचीन काल की उच्चकोटी की स्थापत्यकला का अनोखा समावेश है। यहाँ के कुल 14 ऐतिहासिक स्मारकों में से 3 केन्द्रीय पुरातत्व तथा शेष 11 हरियाणा राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। यहाँं के प्रमुख स्मारकों में सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित उनके दादा इब्राहिम खान का मकबरा, जल महल, शाहकुली खान का मकबरा, राय बालमुकुन्द का छत्ता जिसे बीरबल का छत्ता के नाम से जाना जाता है, तख्त वाली बावड़ी, चोर गुम्बद और शेख मिहिंरा की दरगाह आदि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ का चामुण्डा देवी मंदिर भी ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। महर्षि च्यवन की तपोभूमि ढोसी और माधोगढ़ का ऐतिहासिक किला भी इसी जिले की सीमा में आते हैं।
नारनौल शहर के दक्षिण में आबादी से बाहर एक विशाल तालाब, जिसे खान तालाब कहा जाता है के बीच बना है प्रसिद्ध जलमहल। जिसे 1591 ई. में यहाँ के जागीरदारर शाहकुली खान ने बनवाया था। महल के ऊपर पाँच छतरियाँ बनी हुई हैं। महल तक पहुँचने के लिए मेहराब दार पुल बना हुआ है। इस तालाब में दोहान नदी का जल आकर जमा होता था। वक्त के साथ इसमें मिट्टी जमा हो गई थी जिसे निकलवाकर इसमें नहरी पानी डालने की व्यवस्था की गई है तथा यहाँ एक पार्क विकसित किया गया है। 

शहर के उत्तरी-पश्चिमी दिशा में एक ऊँचाई वाले स्थान पर बना एक ऐतिहासिक स्मारक है-चोरगुम्बद। इसका निर्माण जमाल खां नामक पठान ने अपने मकबरे के रूप में करवाया था। किंतु ऐसी मान्यता है कि नगर से बाहर होने के कारण यह चोरों का आश्रय स्थल बन गया था। इसलिए इसका नाम चोर गुम्बद पड़ गया। यह एक विशाल गोलाकार गुम्बद है जिसकी छत को गोलाकार देकर बहुत ऊँचाई तक उठाया गया है। देखने में दो मंजिला भवन है, मगर ऊपरी मंजिल केवल बरामदा है, जिसके बीस द्वार हैं। यह भवन जीर्ण अवस्था में पहुँच गया था , मगर स्मारक के साथ लगते भू-भाग पर चौ.बसंीलाल की सरकार ने नेताजी सुभाष पार्क बनवाया था जिसके बाद यहाँ लोगों का आना-जाना बढ़ा तो सरकार ने भवन की भी मरम्मत करा दी। एक बार प्रशासन ने इस भवन का नामकरण साहुकार गुम्बद भी किया, मगर सत्ता परिवर्तन के साथ ही जिला प्रशासन ने फिर इसे चोर गुम्बद कहना शुरू कर दिया।
यह जिला शेरशाह सूरी की क्रिड़ास्थली रहा है। सम्राट शेरशाह सूरी ने नगर के दक्षिण-पश्चिम भाग में अपने दादा इब्राहिम खान के मकबरे का निर्माण करवाया था जो स्थापत्य कला के हिसाब से यहाँ के सभी स्मारकों से उत्तम है। अब शहर के बीच आ जाने से यहाँ तक पहुँचना कुछ मुश्किल हो गया है। इसमें लाल पत्थर और सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है। विशालकाय मकबरा आज भी अच्छी स्थिति में है और सूरी वंश की स्थापत्यकला का जीता-जागता नमूना है।
राय बालमुकुन्द द्वारा बनवाया गया छत्ता शहर के बीच में स्थित है। इसे बीरबल के छत्ते के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल राजकाल के सिलसिले में यहाँ आते थे और इस छत्ते में रहते थे। इसलिए इसका नाम बीरबल का छत्ता पड़ गया। यह दो मंंजिला भवन बनावट में किले और महल का समिश्रण नजर आता है। मरम्मत और उचित रखरखाव के अभाव में अब यह तिल-तिल कर नष्ट हो रहा है।
नारनौल से लगभग दस किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखला की ढोसी पहाड़ी है जो महर्षि च्यवन की पतोभूमि और पवित्र तीर्थ स्थल है। पौराणिक कभा के अनुसार इस तीर्थ का संबंध द्वापर युग से है। किवदंति है कि यहाँ महर्षि च्यवन ने सात हजार साल तपस्या की थी। महर्षि ने इस क्षेत्र में पाई जाने वाली जड़ीबूटियों से औषध तैयार की थी जिसे आज भी च्यवन प्राश के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी के कुछ ऊपर चढऩे के बाद शिवकुण्ड आता है जहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। लगभग 460 सीढिय़ाँ चढऩे के बाद पहाड़ी का शिखर आता है। जहां महर्षि च्यवन आश्रम व मंदिर हैं। यहीं चन्द्र कूप है जिसके बारे में मान्यता है कि उसमें सोमवती अमावस्या को पानी स्वयमेेव बाहर आता था, ऐसा संभवत ज्वार-भाटे के कारण होता होगा। अब भी यहाँ सोमवती अमावस्या के दिन भारी मेला लगता है और पवित्र स्नान के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
यह वीरों और बहादुरों का क्षेत्र है यहाँ के सतनामी तो इतिहास प्रसिद्ध हैं ही, जिन्होंने औरगंजेब से टक्कर ली थी। सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी यहाँ के वीर यौद्धाओं ने राव राजा तुलाराम क नेतृत्व में गाँव नसीबपुर के मैदान में ब्रिटिश सेना को सबसे कड़ी चुनौती दी थी और अंग्रेज सेनापति जेरार्ड को मार गिराया था। यहां लगभग पाँच हजार वीर यौद्धाओं ने अपना बलिदान दिया था। देश को सर्वाधिक सैनिक देने का श्रेय भी महेन्द्रगढ़-रेवाड़ी क्षेत्र को ही जाता है। रेजांगला के युद्ध में लडऩे वाले वीर भी इसी क्षेत्र के थे।
वीर सूरमाओं की इस धरती ने संत भी पैदा किये हैं। संत कवि के रूप में विख्यात संत नितानंद, जिनका डिघल में आश्रम है का जन्म नारनौल में ही हुआ था। योग को पुन: लोकप्रिय बनाने वाले योगाचार्य स्वामी रामदेव भी इसी जिले के गाँव सैदअलिपुर में पैदा हुए हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला का जन्म भी इसी जिले में हुआ था, जब उनके पिता यहाँ सेवारत थे। उत्तरांचल के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी का जन्म भी नारनौल के मोहल्ला मिश्रवाड़ा में ही हुआ था। इस क्षेत्र ने डॉ.जे.एस.यादव जैसे जीव वैज्ञानिक को भी जन्म दिया है, जिन्होंने अन्तर्र्राष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया।

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