रेवाड़ी का इतिहास

रेवाड़ी का इतिहास / History of Rewari

दक्षिणी हरियाणा/ अहीरवाल का लंदन कहलाने वाला ऐतिहासिक नगर रेवाड़ी अपने अतीत में बहुत सी गौरव गाथाएँ समेटे हुए है| इस नगर का संबंध भगवान् श्रीकृष्ण से रहा है वहीं स्वामी दयानंद सरस्वती से भी इस नगर का संबंध है| यह नगर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से भी मुख्य रूप से जुड़ा हुआ है| 

नामकरण 

रेवाड़ी के नामकरण को लेकर दो मत प्रचलित हैं | कुछ लोगों का मानना है कि लगभग 5500 वर्ष पूर्व राजा रेवत ने अपनी पुत्री के नाम पर यह नगर बसाया था | उनकी पुत्री का नाम रेवती था जिसे वे प्यार से रेवा कहते थे। राजा रेवत ने अपनी राजकुमारी रेवती का विवाह भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम/ बलभद्र से किया और विवाह के समय यह नगर उन्हें भेंट में दे दिया। रेवाड़ी को पहले 'रेवा-वाड़ी' कहा जाता था, जो कालान्तर में रेवाड़ी हो गया। 
दूसरा मत यह है कि अनरूत प्रदेश के राजा रेवत ने अपनी पुत्री का विवाह बलराम से किया था तब अपने राज्य का एक भू-भाग बलराम/ बलभद्र को विवाह में भेंट में दिया और बलराम ने इस भू-भाग के जंगल को साफ कराकर अपनी पत्नी रेवा के नाम से 'रेवा+वाडी' नगर बसाकर अपनी राजधानी बनाया|
नगर राजा रेवत ने बसाया या बलभद्र ने इस पर भले ही सहमती न हो, लेकिन बलराम की पत्नी और राजा रेवत की बेटी रेवती के नाम पर महाभारत काल में बसाया गया इस पर सभी सहमत हैं| 
रेवाड़ी में एक सराय का नाम बलभद्र सराय है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ बाराती बनकर आये थे तो उन्हें इसी सराय में ठहराया गया था| नगर में एक मोहल्ले का नाम पांचावाला है, इसका संबंध भी लोग बलराम जी के विवाह से जोड़ते हैं और कहा जाता है कि बारात में आये पांचों पांडवों को यहीं ठहराया गया था| 
कहा जाता है कि बलराम जी का वंश नहीं चला तो पर द्वारिका से श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने रेवाड़ी आकर राज्य को पुर्नस्थापित किया|
बताया जाता है कि महाभारत के द्रोण पर्व में भी रेवाड़ी का चर्चा है | अध्याय 19 में श्लोक क्रमांक 5 से 10 में लिखा है कि आचार्य द्रोण ने महाभारत के युद्ध में गरूड़ आकार की व्यूहरचना की थी इसमें रेवाड़ी राज्य के आभीर गरूड़ के नेत्र स्थान में यानि सेना के अगले भाग में तैनात थे||

सम्राट हेमू 

रेवाड़ी राज्य में अनेक पराक्रमी राजा हुए है | दिल्ली की गद्दी पर बैठे हेमचन्द्र विक्रमादित्य, जिन्हें हेमू कहा जाता है, का जन्म रेवाड़ी में ही हुआ था| वह अपनी प्रतिभा के दम पर सूरी सम्राट आदिलशाह का प्रधानमंत्री बनने में सफल रहा|
हुमायूँ की मृत्यु होने पर हेमू बादशाह की ओर से युद्ध करने के लिए दिल्ली रवाना हुआ और ग्वालियर होता हुआ आगे बढ़ा और उसने आगरा तथा दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया। इस विजय से हेमू के पास धन तथा एक विशाल सेना हो गई तो उसने अफगान सेना की कुछ टुकड़ियों को धन का लालच देकर अपने साथ मिला लिया और 7 अक्टूबर 1556 को खुद दिल्ली का सम्राट बन गया | 

रेवाड़ी को कई बार राज्य तथा जिला बनने का गौरव प्राप्त रहा है 1803 ई० में अंग्रेजों ने मराठों से संधि करने के बाद अंग्रेज बादशाह के मुखत्यार बनने के बाद उन्होने लैप्स की नीति के अन्तर्गत 1803 ई० से 1808 ई० तक रेवाड़ी को दिल्ली डिवीजन का जिला बना दिया| किन्तु रानी मायाकौर ने एक अपील अदालत में दायर करके पुन: रेवाडी राज्य का गौरव बहाल कराया|  प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में रेवाड़ी के राजा राव तुला राम और राव गोपालदेव की अग्रणीय भूमिका होने के कारण अंग्रेजों ने 1860-61 ई० में विभिन्न आदेशों से रेवाड़ी राज्य को जब्त करके संयुक्त पंजाब राज्य के गुड़गांव जिले के अन्तर्गत तहसील बना दिया| 1966 ई० में हरियाणा राज्य बनने के बाद 1972 ई० तक रेवाड़ी तहसील गुड़गांव जिले का हिस्सा बनी रही| 1972 ई० में रेवाड़ी को उप-मण्डल बना कर महेन्द्रगढ़ जिले में शामिल कर दिया गया| 1 नवम्बर 1989 ई० को रेवाड़ी जिला बना दिया गया |

1857 की क्रांति 

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रेवाड़ी का बहुत योगदान रहा| राजा राव तुलाराम और राव गोपाल देव के नेतृत्व में नारनौल ले पास स्थित नसीबपुर के मैदान में भारतीय सेना ने ब्रिटिश सेना को जबर्दस्त टक्कर दी और ब्रिटिश सेनापति जेरार्ड को मार गिराया| लगभग 5 हजार वीर भारतीय भी इस  युद्ध में काम आये| किन्तु ब्रिटिश सेना को कुछ देसी राजाओं से मदद मिल जाने के कारण ब्रिटिश सेना विजयी रही|

स्वामी दयानंद का आगमन

1872 में रेवाड़ी की गद्दी पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक राजा राव गोपालदेव के पुत्र राव लालसिंह बैठे | राव लालसिंह के समय ही स्वामी दयान्द सरस्वती रेवाडी आये और 14 दिनों तक जन चेतना के ;लिए प्रचार किया| स्वामी जी ने इसी दौरान विश्व की सर्वप्रथम गऊशाला का निर्माण रेवाड़ी में करवाया।


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