रेवाड़ी के ऐतिहासिक स्मारक और सरोवर

रेवाड़ी के ऐतिहासिक स्थल- स्मारक और सरोवर 

महाभारतकालीन शहर रेवाड़ी अपने दामन में समृद्ध विरासत समेटे हुए है| यहाँ से सरोवर और धार्मिक स्थल इसके गौरवशाली अतीत की कहानी खुद कहते हैं| 

रेवाड़ी नगर के प्रमुख सरोवर

रेवाड़ी नगर के सरोवरों में से इस समय तीन प्रमुख सरोवर अस्तित्व में हैं | जिनमें सोलहराही, बड़ा तालाब या तेज सरोवर (तेज सागर) और नंदसागर (नंदसरोवर) शामिल हैं| 

1. सोलहराही 

शहर के सेक्टर एक, हाउसिंग बोर्ड कालोनी व महाराणा प्रताप चौक के बीच स्थित प्राचीनतम तालाब सोलहराही के मात्र अवशेष ही बचे हैं। कहा जाता है कि 17वीं व 18वीं सदी के मुगल साम्राज्य की दास्तान का मूक गवाह रहा यह तालाब जनता ने सामूहिक प्रयासों से चंदा इकट्ठा करके बनवाया था। समाजसेवी गंगाराम भगत की देखरेख में निर्माण कार्य हुआ। उस समय सोलह मार्ग यहां आकर मिलते थे, इसलिए इसका नाम सोलह राई (राही) पड़ गया। बुजुर्ग बताते हैं कि शहर का पानी खारा था, इसलिए पहले लोग सोलह राही स्थित कुओं से ही पेयजल लाते थे। 
कुछ दंतकथाओं के अनुसार, रुद्रसिंह ने इस ऐतिहासिक सरोवर का निर्माण कराया। 16 रास्तों के मिलान पर ढलान में स्थापित इस सरोवर को सोलह राही से ही जाना जाता है।
आज यह तालाब पूरी तरह से तबाह हो चुका है। जहां एक ओर इसकी प्राचीन कलात्मक दीवारें ढह चुकी हैं वहीं आजकल कहीं झुग्गियां तो कहीं मढ़ी आदि बनाकर इस पर चहुं ओर से अवैध कब्जे किए जा रहे हैं। इसमें विभिन्न मार्गों से आने वाले पानी के मार्गों को भी बंद किया जा रहा है। इसकी चारदीवारी जगह-जगह से तोड़कर इसमें से मिट्टी को उठाया जाना, इसके प्राचीन स्वरूप से छेड़छाड़ करने तथा इसमें जगह-जगह गोबर थापने के पथवारे बनाना जैसे इस प्राचीन धरोहर की खूबसूरती को बिगाड़ रहे हैं।

2. बड़ा तालाब या तेज सरोवर (तेज सागर)

शहर का दूसरा तालाब सन् 1806 में सोलहराही के करीब सौ साल बाद तत्कालीन राजा तेजसिंह ने एक लाख 83 हजार की लागत से बनवाया था। कहते हैं कि राव रामसिंह (द्वितीय) ने इस तालाब का निर्माण शुरू कराया, किन्तु उनकी मृत्यु हो जाने के कारण इसे राव तेजसिंह ने पूरा करवाया।
पेयजल समस्या को हल करने के लिए इस तालाब के चारों ओर पांच कुओं का निर्माण कराया गया। बड़े तालाब के नाम से प्रसिद्ध यह तेज सरोवर पहले तेज सागर कहलाता था। तेज सरोवर के किनारे ही प्रसिद्ध हनुमान मंदिर स्थित है।
इस ऐतिहासिक तालाब को भी जीर्णोद्धार की सख्त जरुरत है । इसकी विशाल दीवारों पर लगा चूना अब पत्थरों का साथ छोडऩे लगा है। कलात्मक कंगूरे व द्वार की महीन नक्काशी तिल-तिल कर नष्ट हो रही है। अवैध कब्जे लगातार बढ़ रहे हैं। नगर परिषद ने चारदीवारी ऊंची करवाकर इसकी दुर्दशा छिपाने की कोशिश अवश्य की।

3. नंदसागर (नंदसरोवर)

रेवाड़ी का तीसरा तालाब नंदसागर (नंदसरोवर) राजा नंदराम ने अपने शासनकाल में बनवाया था, जिसे क्षेत्र की जनता छोटे तालाब के नाम से जानती है। यहां प्राचीन मंदिर तथा राव गूजरमल व राव नंदराम की ऐतिहासिक छतरियां आज भी मौजूद हैं। ऐतिहासिक महल रानी की ड्योढ़ी से नंदसागर एक सुरंग द्वारा जुड़ा हुआ है। दिसंबर 1878 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने नंदसागर की छतरियों में प्रवचन दिए थे।
आर्य समाज की स्थापना व देश की पहली गौशाला के निर्माण के संदर्भ में स्वामी जी ने बैठकें यहीं कीं।
                                                                                                           -सत्यवीर नाहडिय़ा

धार्मिक स्थल- 

मनसा देवी मंदिर 

रेवाड़ी रियासत के राजा राव नाथूराम ने माँ मनसा देवी के मन्दिर का निर्माण पुत्र प्राप्ति के लिए करवाया था और उसमे माँ कांगड़ा देवी की प्रतिमा भी स्थापित की गई थी| 
रेवाड़ी नगर के मोहल्ला देवीस्थान स्थित मां मनसा देवी के इस मंदिर की उत्तर दिशा में शिव परिवार तथा हनुमानजी की मूर्तियां स्थापित हैं तथा इसकी पश्चिम दिशा में बाबा भैरु का एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है।
मंदिर के परिसर में मां की सवारी के रूप में रथ को खड़ा करने के लिए रथखाने की विशेष व्यवस्था की गयी थी। नवरात्रों के पावन पर्व पर मां मनसा देवी की प्रतिमा को रथ में विराजमान कर भव्य शोभायात्रा नगर के मुख्य द्वारों व प्रमुख बाजारों से निकाली जाती थी। दूरदराज से श्रद्धालु इस रथयात्रा में शरीक होते थे तथा मंदिर में छत्र, पान, सुपारी व ध्वजा-नारियल के साथ मां की आराधना करते थे। 
इस परिसर में स्थापित मां मनसा देवी की उक्त ऐतिहासिक प्रतिमा को प्राचीन मूर्तिकला तथा कलात्मक कारीगरी का नायाब नमूना कहा जा सकता है। प्रतिमा के भव्य आभामंडल के अलावा इसके कंधों पर रिद्धि-सिद्धि तथा हर अंग पर विभिन्न देवी-देवताओं का कलात्मक पक्ष इसकी पुरातात्विक महत्ता को दर्शाता है। 

घंटेश्वर मंदिर

रेवाड़ी जिला के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शहर के केंद्र में स्थित घंटेश्वर मंदिर भी शामिल है। इस मंदिर में विभिन्न देवी- देवताओं मूर्तियां स्थापित की गई हैं। यह तीन मंजिला मंदिर है जिसमें नगर के ही नहीं आसपास के लोग भी दर्शनार्थ आते हैं| 

भगवत भक्ति आश्रम 

रामपुर स्थित भगवत भक्ति आश्रम भी एक ऐतिहासिक स्थल है| जो किसी ज़माने में महिला शिक्षा का उत्कृष्ट केंद्र होता था| इस आश्रम की स्थापना रेवाड़ी के राजा राव बलबीर सिंह ने जनकल्याण और भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए उनसे पूर्व राजा रहे राव तेजसिंह द्वारा बनवाए गए उद्यान में की थी| इस आश्रम के नीचे एक हजार बीघा यानी लगभग सवा छ सौ एकड़ भूमि आती थी| 
आश्रम का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता था| आश्रम का प्रथम कुलपति परमहंस स्वामी परमानन्द सरस्वती को नियुक्त किया गया था|
इस आश्रम में शिक्षा, चिकित्सा और समाज सेवा की व्यवस्था की गई थी| शिक्षा गुरुकुल पद्धति पर आधारित थी| सभी वर्गों के विद्यार्थी गुरुकुल की तरह आवास में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे| यह संसथान ब्रह्मचारी विद्याध्यन पाठशाला कहलाता था|
आश्रम में विदित पद्धति पर आधारित स्त्री शिक्षा की सुंदर व्यवस्था थी| इसके कार्य से प्रभवित होकर प्रसिद्ध उद्योग पति जमनालाल बजाज ने अपनी बहन सुश्री मदालसा और पुत्री केशर देवी की शिक्षा ग्रहण करने के लिए आश्रम में भर्ती करवाया था| महात्मा गाँधी ने भी मीरा बहन को उत्तम शिक्षा दिलवाने के लिए इसी आश्रम को चुना| रेवाड़ी राजघराने की राजकुमारी सुमित्रा बाई ने भी शिक्षा ग्रहण की थी| 
कहते हैं मदन मोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, पंडित नेहरु, गोविन्द वल्लभ पन्त, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जमुनालाल बजाज और घनश्याम दास बिडला इसे शांति निकेतन से भी श्रेष्ठ और रमणीक बताते थे| सेठ घनश्याम दास बिडला ने तो आश्रम से ही प्रेरणा लेकर पिलानी में एक विशाल संस्थान का निर्माण किया जहां विज्ञान और तकनीक की शिक्षा भी दी जाती है| 
ब्रहमचारी और कन्या पाठशाला के अलावा आश्रम में विधवाओं और असहाय महिलाओं के लिए नारी निकेतन भी था| इसमें युवा महिलाओं के लिए शिक्षा तथा रोजी रोटी के साधन जुटाने का भी प्रबंध था| 
आश्रम में औषधालय था जिसमें निशुल्क दवाएं दी जाती थीं| इसके अलावा पुस्तकालय और छापाखाना की भी व्यवस्था थी| जीव जंतुओं के कल्याण के लिए पशु चिकित्सालय और पशुओं के लिए जलाशय भी था| 

स्वामी दयानंद गौशाला 

रेवाड़ी को देश की पहली गौशाला देने का गौरव भी हासिल है| जिसकी स्थापना आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने कर-कमलों से की थी। रेवाड़ी-नारनौल रोड़ पर राव गोपाल देव चौक से थोड़ा पहले बाईं ओर स्थित महर्षि दयानंद गौशाला के साथ स्वामी दयानंद के रेवाड़ी आगमन की अनमोल स्मृतियां जुडी हुई हैं|

लाल मस्जिद 

रेवाड़ी की पुरानी कचेहरी के पास एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक मस्जिद स्थित है| जिसे लाल मस्जिद के नाम से जाना जाता है| इस मस्जिद का निर्माण मुग़ल सम्राट अकबर के शासन काल में 1570 के आसपास हुआ माना जाता है| 
संभवत लाल पत्त्थर का प्रयोग किये जाने के कारण इसे लाल मस्जिद कहा जाता है| 
                                                                                                                 

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