नारनौल के दर्शनीय स्थल/ Tourist Place in Narnaul

नारनौल (महेंद्रगढ़) के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल  

क्या-क्या देखें नारनौल में 

हरियाणा के किसी भी एक शहर में सर्वाधिक ऐतिहासिक स्मारक होने का गौरव नारनौल को हासिल है। यहाँ के ऐतिहासिक स्मारक अपने कलात्मक सौन्दर्य, स्थापत्य कला, ऐतिहासिक साक्ष्यों और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में नायाब हैं। इनमें प्राचीन काल की उच्चकोटी की स्थापत्यकला का अनोखा समावेश है। यहाँ के कुल 14 ऐतिहासिक स्मारकों में से 3 केन्द्रीय पुरातत्व तथा शेष 11 हरियाणा राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। यहाँं के प्रमुख स्मारकों में सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित उनके दादा इब्राहिम खान का मकबरा, जल महल, शाहकुली खान का मकबरा, राय बालमुकुन्द का छत्ता जिसे बीरबल का छत्ता के नाम से जाना जाता है, तख्त वाली बावड़ी, चोर गुम्बद और शेख मिहिंरा की दरगाह आदि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ का चामुण्डा देवी मंदिर भी ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। महर्षि च्यवन की तपोभूमि ढोसी और माधोगढ़ का ऐतिहासिक किला भी इसी जिले की सीमा में आते हैं।

जलमहल 

नारनौल शहर के दक्षिण में आबादी से बाहर एक विशाल तालाब, जिसे खान तालाब कहा जाता है के बीच बना है प्रसिद्ध जलमहल। जिसे 1591 ई. में यहाँ के जागीरदार शाहकुली खान ने बनवाया था। महल के ऊपर पाँच छतरियाँ बनी हुई हैं। महल तक पहुँचने के लिए मेहराब दार पुल बना हुआ है। इस तालाब में दोहान नदी का जल आकर जमा होता था। वक्त के साथ इसमें मिट्टी जमा हो गई थी जिसे निकलवाकर इसमें नहरी पानी डालने की व्यवस्था की गई है तथा यहाँ एक पार्क विकसित किया गया है। 

चोरगुम्बद

शहर के उत्तरी-पश्चिमी दिशा में एक ऊँचाई वाले स्थान पर बना एक ऐतिहासिक स्मारक है-चोरगुम्बद। इसका निर्माण जमाल खां नामक पठान ने अपने मकबरे के रूप में करवाया था। किंतु ऐसी मान्यता है कि नगर से बाहर होने के कारण यह चोरों का आश्रय स्थल बन गया था। इसलिए इसका नाम चोर गुम्बद पड़ गया। यह एक विशाल गोलाकार गुम्बद है जिसकी छत को गोलाकार देकर बहुत ऊँचाई तक उठाया गया है। देखने में दो मंजिला भवन है, मगर ऊपरी मंजिल केवल बरामदा है, जिसके बीस द्वार हैं। यह भवन जीर्ण अवस्था में पहुँच गया था , मगर स्मारक के साथ लगते भू-भाग पर चौ.बसंीलाल की सरकार ने नेताजी सुभाष पार्क बनवाया था जिसके बाद यहाँ लोगों का आना-जाना बढ़ा तो सरकार ने भवन की भी मरम्मत करा दी। एक बार प्रशासन ने इस भवन का नामकरण साहुकार गुम्बद भी किया, मगर सत्ता परिवर्तन के साथ ही जिला प्रशासन ने फिर इसे चोर गुम्बद कहना शुरू कर दिया।

इब्राहिम खान का मकबरा

यह जिला शेरशाह सूरी की क्रिड़ास्थली रहा है। सम्राट शेरशाह सूरी ने नगर के दक्षिण-पश्चिम भाग में अपने दादा इब्राहिम खान के मकबरे का निर्माण करवाया था जो स्थापत्य कला के हिसाब से यहाँ के सभी स्मारकों से उत्तम है। अब शहर के बीच आ जाने से यहाँ तक पहुँचना कुछ मुश्किल हो गया है। इसमें लाल पत्थर और सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है। विशालकाय मकबरा आज भी अच्छी स्थिति में है और सूरी वंश की स्थापत्यकला का जीता-जागता नमूना है।

बीरबल का छत्ता

राय बालमुकुन्द द्वारा बनवाया गया छत्ता शहर के बीच में स्थित है। इसे बीरबल के छत्ते के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल राजकाल के सिलसिले में यहाँ आते थे और इस छत्ते में रहते थे। इसलिए इसका नाम बीरबल का छत्ता पड़ गया। यह दो मंंजिला भवन बनावट में किले और महल का समिश्रण नजर आता है। मरम्मत और उचित रखरखाव के अभाव में अब यह तिल-तिल कर नष्ट हो रहा है।

तख्त वाली बावड़ी 

यहाँ की दर्जनभर बावडिय़ाँ और आधा दर्जन विशाल तालाब सुविख्यात थे। इनमें खान तालाब, खलील तालाब, शोभा सागर, टिल्लूवाली, छोटा-बड़ा तालाब, बहादुर सिंह का तालाब आदि के अलावा कुछ कलात्मक बावड़ियाँ भी थी| जिनमें से कुछ अस्तित्व खो चुकी हैं और कुछ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं| इनमें तख़्त वाली बावड़ी प्रसिद्ध है जो शहर के पश्चिम में मोहल्ला मिश्रवाडा और छोटा-बड़ा तालाब के बीच स्थित है| इसके पास ही नागपुर वालों की बावड़ी भी है|

अन्य स्मारक

उपरोक्त ऐतिहासिक भवनों के अलावा यहाँ शाह्कुली खान का मकबरा, त्रिपोलिया या ईदगाह, शेख मिहरा की दरगाह आदि कई स्मारक हैं| 

माधोगढ का किला 

महेंद्रगढ़ से सतनाली मार्ग पर करीब 10 किलोमीटर दूर माधोगढ का किला अरावली की पहाड़ियों पर स्थित एक ऐतिहासिक किला है| इसका निर्माण सवाई माधोपुर के शासक सवाई माधोसिंह ने घाटियों के बीच पहाड़ी पर करवाया था जहां उनके सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करते थे तथा अपनी युद्ध सामग्री भी संभाल कर रखते थे। इस किले में रानी के लिए एक बड़ा तालाब और घोड़ों के लिए घुड़साल भी बनवाए थे। पहाड़ों के बीच पेयजल के लिए एक कुंआ भी है। लगभग 300 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस किले से दूर-दूर तक दुश्मन पर नजर रखी जा सकती थी| पहाड़ को काटकर इस स्थल तक सड़क का निर्माण भी करवाया गया है। इसे हरियाणा सरकार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयासरत है|

महेंद्रगढ़ का किला 

महेंद्रगढ का किला अब पुरानी कचेहरी के नाम से जाना जाता है| लगभग 682 वर्ष पूर्व बनाया गया यह किला मराठाकाल की कला का अद्भूत नमूना है। किन्तु मराठा काल में निर्मित यह ऐतिहासिक किला अब धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है। जो किसी जमाने में अति सुरक्षित किला माना जाता था। इसके चारों ओर भूमिगत जलस्तर तक की गहरी एवं अत्याधिक चौड़ी खाई बनी हुई थी जिसके कारण इसे अभेद्य किला माना जाता था| यह किला भूमिगत सुरंग के माध्यम में नारनौल एवं माधोगढ़ के किलों से जुड़ा हुआ था । 
मराठों द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक किले में महाराजा नाभा के समय से जिला कारागार के अलावा उपमंडल स्तर के लगभग सभी विभागों के कार्यालय चलते थे जो अब नए स्थानांतरित कर दिए गये हैं| किले के चारों तरफ बनी खाई भी मिटटी से दशकों पहले भरवाई जा चुकी है| अब यह बंद पड़ा अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है|

धार्मिक स्थल- 

धार्मिक स्थलों की बात करें तो महर्षि च्यवन की तपोभूमि ढोसी के अलावा यहाँ का चामुंडा मंदिर, मोड़ा वाला मंदिर, बामनवास-मौखूता के पास स्थित रामेश्वर धाम, कोजिंदा-बहरोड़ मार्ग पर स्थित कडियाँ वाला हनुमान मंदिर और हाल ही में निर्मित खालड़ा (रघुनाथपुरा) का केसरिया धाम लोगो के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं| 

ढोसी तीर्थ

नारनौल से लगभग दस किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखला की ढोसी पहाड़ी है जो महर्षि च्यवन की पतोभूमि और पवित्र तीर्थ स्थल है। पौराणिक कथा अनुसार इस तीर्थ का संबंध द्वापर युग से है। किवदंति है कि यहाँ महर्षि च्यवन ने सात हजार साल तपस्या की थी। महर्षि ने इस क्षेत्र में पाई जाने वाली जड़ीबूटियों से औषध तैयार की थी जिसे आज भी च्यवन प्राश के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी के कुछ ऊपर चढऩे के बाद शिवकुण्ड आता है जहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। लगभग 460 सीढिय़ाँ चढऩे के बाद पहाड़ी का शिखर आता है। जहां महर्षि च्यवन आश्रम व मंदिर हैं। यहीं चन्द्र कूप है जिसके बारे में मान्यता है कि उसमें सोमवती अमावस्या को पानी स्वयमेेव बाहर आता था, ऐसा संभवत ज्वार-भाटे के कारण होता होगा। अब भी यहाँ सोमवती अमावस्या के दिन भारी मेला लगता है और पवित्र स्नान के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

चामुंडा मंदिर 

चामुंडा देवी का यहाँ स्थित मंदिर सदियों पुराना है| आजाद चौक और किला रोड के बीच गोबिंद टाकिज वाली गली में स्थित यह मंदिर प्राचीन काल से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है| मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इस पर मस्जिद भी बनवा दी थी| लेकिन जीर्णोद्धार के बाद मंदिर पूजा और आस्था का केंद्र बना हुआ है, यहाँ मेला भी लगता है| 


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